प्रेरक कहानियां - पार्ट 91
स्वयं पर विजय
पेशावर काण्ड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली लम्बी क़ैद काटने के बाद गांधी जी के आश्रम में रहने गए। साथ में भार्या भी थी, जो शादी के बाद कभी भी पति के संसर्ग का लाभ न ले सकी थी। गांधी के आश्रम में ग्यारह व्रतों में से ब्रह्मचर्य का प्रमुख स्थान था। वह स्वयं भी पैंतीस साल की वय में ब्रह्मचर्य का संकल्प ले चुके थे, और अपनी पत्नी को बा ( माँ) कह कर पुकारते थे। विवाहित आश्रम वासी भी वहां भाई - बहन की तरह रहते थे।
प्रयोग धर्मी महात्मा की यह अजब सनक थी। वह अपने मंझले पुत्र मणि लाल को ब्रह्मचर्य खंडन के अपराध में पैंतीस साल तक अविवाहित रहने की कड़ी सज़ा दे चुके थे। गढ़वाली दम्पति को आश्रम का नियम समझा दिया गया। भागीरथी देवी को कोठरी में सुलाया गया और चन्द्र सिंह की खटिया बाहर पेड़ के नीचे लगा दी गयी।
करना परमात्मा का ऐसा हुआ की रात में बारिश आई और गढ़वाली को अपनी खटिया बरामदे में ले जानी पड़ी। लेकिन जगद्नियन्ता को कुछ और ही मंज़ूर था। बारिश तिरछी होने लगी और बौछारों ने बरामदे को भी चपेट में ले लिया। खटिया भीतर ही ले जानी पड़ी। एक विवाहित ब्रह्मचारिणी यह सब देख रही थी। उसके पति के रात के पहरे की ड्यूटी थी और वह अकेले रह कर हलकान होती रहती थी। उसने गांधी जी तक शिकायत पंहुचायी। प्रकोप की आशंका से सब थर थर कामने लगे। ऋषि का क्रोध अनशन की परिणति तक पंहुचता था। महात्मा ने ब्रह्मचारिणी को लताड़ा -
तू रात के दो बजे इनकी कोठरी में क्यों झाँक रही थी ?
साथ ही फैसला सुनाया की --"अब से चन्द्र सिंह दम्पति एक साथ, एक ही कोठरी में, एक ही खाट पर रहेंगे".
उन्होंने स्वयं पर विजय प्राप्त की, जो सर्वाधिक दुर्लभ है